दिल्ली, एमएम : एक तरफ राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन तक हो गया। तो दूसरी तरफ अभी तक बाबरी मस्जिद मामले में फैसला अटका पड़ा है। लिहाजा शनिवार को अयोध्या की बाबरी मस्जिद के विध्वंस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लखनऊ की सीबीआई ट्रायल कोर्ट को फैसला सुनाने के लिए एक महीने का समय दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को फैसला सुनने के लिए एक महीने का समय बढ़ाते हुए 30 सितंबर तक का समय दिया है। इस केस में सीनियर बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार और अन्य नेताओं को आरोपी बनाया गया है।
Supreme Court extends deadline for a month, till September 30, for CBI trial court in Lucknow to pronounce its judgement on cases against senior BJP leaders L K Advani, Murali Manohar Joshi, Uma Bharti & other leaders in Babri Masjid demolition case. SC gave the order on Aug 19. pic.twitter.com/KdZgNRWeiP
— ANI (@ANI) August 22, 2020
न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की एक पीठ ने 19 अगस्त को 30 सितंबर तक फैसला सुनाने की समय सीमा बढ़ाने का आदेश पारित किया था। शीर्ष अदालत ने अपने आखिरी आदेश में फैसला सुनाने के लिए ट्रायल कोर्ट सीबीआई जज को 31 अगस्त तक फैसला सुनने का समय दिया था।
अब सुप्रीम कोर्ट का आदेश विशेष न्यायाधीश सुरेन्द्र कुमार यादव द्वारा दायर याचिका पर आया, जो बाबरी मस्जिद के विध्वंस से संबंधित मामले की सुनवाई कर रहे हैं और मामले में फैसला सुनाने के लिए और समय की मांग कर रहे थे। गौरतलब है कि अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को ‘कारसेवकों’ ने मस्जिद ढहा दी थी। उनका दावा था कि मस्जिद की जगह पर राम का प्राचीन मंदिर हुआ करता था। राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व करने वाले लोगों में आडवाणी और जोशी भी शामिल थे।
गौरतलब है कि अयोध्या बाबरी विध्वंस मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 24 जुलाई को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए विशेष जज के सामने अपना बयान दर्ज करवाया था। इस दौरान देश के पूर्व उप-प्रधानमंत्री ने अपने खिलाफ लगे सभी आरोपों को खारिज कर दिया था। उन्होंने तत्कालीन केंद्र सरकार को अपने खिलाफ लगे आरोपों के लिए जिम्मेदार ठहराया था। इस मामले में खुद को निर्दोष करार देते हुए आडवाणी ने कहा था कि उन पर लगाए गए आरोप राजनीति से प्रेरित थे।
बतादें कि जोशी ने कल अदालत से कहा था कि वह बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले में निर्दोष हैं और केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने राजनीतिक बदले की भावना से उन्हें गलत तरीके से फंसाया है। उन्होंने आरोप लगाया था कि अभियोजन पक्ष की तरफ से इस मामले में पेश किए गए सबूत झूठे और राजनीति से प्रेरित हैं।